
स्वर्णकार शब्द की व्युत्पत्तिसुनार शब्द मूलत: संस्कृत भाषा के स्वर्णकार का अप करें]भ्रंश है जिसका अर्थ है स्वर्ण अथवा सोने की धातु का काम करने वाला। प्रारम्भ में निश्चित ही इस प्रकार की निर्माण कला के कुछ जानकार रहे होंगे जिन्हें वैदिक काल में स्वर्णकार कहा जाता होगा। बाद में पुश्त-दर-पुश्त यह काम करते हुए उनकी एक जाति ही बन गयी जो आम बोलचाल की भाषा में सुनार कहलायी। जैसे-जैसे युग बदला इस जाति के व्यवसाय को अन्य वर्ण के लोगों ने भी अपना लिया और वे भी सुनार हो गये।लोकमानस में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार सुनार जाति के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि त्रेता युग में परशुराम ने जब एक-एक करके क्षत्रियों का विनाश करना प्रारम्भ कर दिया तो दो राजपूत भाइयों को एक सारस्वत ब्राह्मण ने बचा लिया और कुछ समय के लिए दोनों को मैढ़ बता दिया जिनमें से एक ने स्वर्ण धातु से आभूषण बनाने का काम सीख लिया और सुनार बन गया और दूसरा भाई खतरे को भाँप कर खत्रीबन गया और आपस में रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखा ताकि किसी को यह बात कानों-कान पता लग सके कि दोनों ही क्षत्रिय हैं।आज इन्हें मैढ़ राजपूत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये वही राजपूत है जिन्होंने स्वर्ण आभूषणों का कार्य अपने पुश्तैनी धंधे के रूप में चुना है।
लेकिन आगे चलकर गाँव में रहने वाले कुछ सुनारों ने भी आभूषण बनाने का पुश्तैनी धन्धा छोड़ दिया और वे खेती करने लगे।रॉबर्ट वान रसेल नामक एक अंग्रेज लेखक के अनुसार सन् 1911 में हिन्दुस्तान के एक प्रान्त मध्य प्रदेश में ही सुनारों की जनसंख्या 96,000 थी और अकेले बरार में 30,000 सुनार रहते थे। सम्पन्न सुनारों की आबादी गाँवों के बजाय शहरों में अधिक थी। .अन्य हिन्दू जातियों की तरह सुनारों मे भी वर्ग-भेद पाया जाता है। इनमें अल्ल का रिवाज़ इतना प्राचीन है कि जिसकी कोई थाह नहीं।ये निम्न 3 वर्गों में विभाजित है,जैसे 4,13,और सवा लाख में इनकी प्रमुख अल्लों के नाम भी विचित्र हैं जैसे ग्वारे,भटेल,मदबरिया,महिलबार,नागवंशी,छिबहा, नरबरिया,जडिया, सड़िया, धेबला पितरिया, बंगरमौआ, पलिया, झंकखर, भड़ेले, कदीमी, नेगपुरिया, सन्तानपुरिया, देखालन्तिया, मुण्डहा, भुइगइयाँ, समुहिया, चिल्लिया, कटारिया, नौबस्तवाल, व शाहपुरिया.सुरजनवार , खजवाणिया.डसाणिया,मायछ.लावट .कड़ैल.दैवाल.ढल्ला.कूकरा.डांवर.मौसूण.जौड़ा . जवडा. माहर. रोडा. बुटण.तित्तवारि.भदलिया. भोमा. अग्रोयाआदि-आदि। अल्ल का अर्थ निकास या जिस स्थान से इनके पुरखे निकल कर आये और दूसरी जगह जाकर बस गये थे आज तक ऐसा माना जाता है।
सुनार अपने नाम के आगे उपनाम या जातिसूचक नाम के रूप में सोनी, रस्तोगी, हेमकार, सिंह, सेठ, स्वर्णकार, शाह, भूटानी, भोला, सोनिक, बग्गा, बब्बर अथवा वर्मा लगाते हैं। गुजरात और राजस्थान के सुनार सोनी के नाम से ही जाने जाते हैहरियाणा के स्वर्णकार अपने नाम के आगे बहुधा सोनी या वर्मा ही लगाना पसन्द करते हैं। भारत विभाजन से पूर्व सिन्ध प्रान्त के खुदाबन्द जिले के सुनार आज भी पाकिस्तान के वर्तमान हैदराबाद प्रान्त में रहते हैं। वे अपने को खुदाबन्द सिन्धी स्वर्णकार कहने में गर्व का अनुभव करते हैं।[3]
Maharashtra me jo Sonar cast hai,woh kahase belobg karte hai?
ReplyDeleteunka origin kahanka hai or upnam kya hai?
Wha v soni hi upnam lgaya jata hii
ReplyDeleteबिहार में ठाकुर स्वर्णकार की जनसंख्या अधिक है
ReplyDeleteबिहार में ठाकुर स्वर्णकार की जनसंख्या अधिक है
ReplyDeleteHe mere parm veer maid chhattisgarh Swarnkar Bhaiyo Hm ek Raha ki ek mahaveer raha ki santan h fir Bhi Hamara Raj pure Bhartiya me pure visv me kyo nhi h hm ek hokr agar rojana 100 ghri me sampark kre to hm mla mp CM avm pm bn skte h
ReplyDeleteHe mere parm veer maid chhtriy bhaiyo
ReplyDeleteHe mere parm veer maid chhtriy bhaiyo
ReplyDeleteHe mla mp CM avm pm bnna h
ReplyDeleteमहर्षि वाल्मीकि जी का हमारे समाज से क्या गाथा हैं।
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